NEW YEAR STARTING

गुरु-शिष्य प्रसंग : 
गुरु जी - शिष्यों उपकार करना बड़े पुण्य का कार्य है, प्रतिदिन किसी न किसी का उपकार अवश्य किया करो। 
शिष्य गण : गुरूजी; उपकार में क्या-क्या करना चाहिए ?

गुरु जी - जैसे कोई वृद्ध-बच्चा-अँधा-लंगड़ा हो उसे सड़क पार कर देना। कोई डूब रहा हो तो उसे बचाना  ........ 
शिष्य गण - ठीक है गुरु जी कल से हम लोग उपकार किया करेंगे। 

अगले दिन : 
गुरु जी - शिष्यों; बताओ क्या-क्या उपकार करके आये हो ?
शिष्य गण - (एक स्वर में ) गुरु जी हमने एक वृद्धा को सड़क पार किया। 

गुरु जी - अतिउत्तम , किन्तु तुम सबने एक ही उपकार कैसे किया ?
शिष्य - गुरु जी वो बुढ़िया तो सड़क के पार जाना ही नहीं चाहती थी, हमने बहुत समझाया की उपकार करना है चलो सड़क पार कर देता हूँ, लेकिन वो मान ही नहीं रही थी तो हम सबने मिलकर उसे घीचते -घसीटते हुए सड़क पार कर दिया ?
(गुरु-शिष्य प्रसंग का उद्देश्य अंत में बताऊंगा)
       
        नववर्ष मनाने के तरीके से तो आप सब भली-भांति परिचित ही होंगे की कौन सा वर्ग किस तरीके से नए साल का जश्न मनाते हैं। नववर्ष पर उत्सव नाम की कोई चीज देखने को मिलती ही नहीं है। कोई भी पर्व होता है तो बड़ी सादगी-सफाई से उत्सव मनाया जाता है। १ जनवरी को नए साल का जश्न तो मनाते हैं किन्तु उत्सव जैसा कुछ भी दिखाई नहीं देता है। वास्तव में ०१ जनवरी से नववर्ष आरम्भ भी नहीं होता है लेकिन ये चर्चा हम अन्यत्र करेंगे। अभी नववर्ष आरम्भ करने पर चर्चा करेंगे। 
        उत्सव मनायें या न मनायें, भले ही जश्न क्यों न मनायें किन्तु नए साल का आरम्भ सद्कार्यों से ही करना चाहिए। यदि सद्कार्य जुड़ जायेगा तो वो उत्सव हो जायेगा। सद्कार्य नहीं जुड़े होने के कारण उत्सव नहीं हो पाता है, ये एक बड़ी कमी है जबकि विश्व स्तर पर १ जनवरी को नए साल का जश्न जरूर मनाया जाता है। मनुष्य मात्र के लिए सबसे बड़ा सद्कार्य गोस्वामी जी ने रामचरित मानस में इस प्रकार बताया है :

देह धरे कर यह फलु भाई। भजिय राम सब काम बिहाई ।।
       मानव शरीर धारण करने का एक ही फल होना चाहिए कि सब कुछ छोड़कर भी श्रीराम का भजन करना चाहिए। 
       श्रीराम के भजन करने का तात्पर्य ईश्वर के भजन से है; चाहे जो हों - परमात्मा के जिस स्वरूप को मानते हो अपने इष्ट का स्मरण - भजन करना ही सबसे बड़ा सद्कार्य है। और नववर्ष का आरम्भ निश्चित रूपेण इसी सद्कार्य से होना चाहिए। ये आवश्यक नहीं कि किसी मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर जाकर ही गाना है, घर में मानसिक रूप से इष्ट का स्मरण करना ही पर्याप्त है। 
       इसके बाद सद्कार्यों में परोपकार, सेवा होना चाहिए लेकिन जरूरतमंद की ही उपकार-सेवा करनी चाहिए, बहुत सारे ठग इसका अनुचित लाभ भी उठा लेते हैं। और ना ही गुरु-शिष्य प्रसंग के शिष्य जैसा उपकारी बनना चाहिए। 

      मैंने इस वर्ष एक नया सद्कार्य करने के लिए विचार किया है, और वो कार्य है गुरु जी की कविताओं को ब्लॉग-यूट्यूब के माध्यम से प्रकाशित करना। आप भी नववर्ष में कोई नया सद्कार्य करने का विचार अवश्य करें।